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स्वामी परमानन्द जी के जन्म जाट गुणों की तथा जो उन्होंने अपनी तपस्या या त्याग से अर्जित किया | उन सभी कारकों ,पहलुओं का यहाँ दिग्दर्शन होना ही चाहिए | सर्वप्रथम दूध के रूप में ही उनका परिचय दूंगा -शुद्ध दूध का परिचय शुद्ध दूध के रूप में ही दिया जा सकता है |दूध की खीर बनी या चाय बनी वह एक मिश्रण है | स्वामी जी का सामाजिक जीवन मिश्रण है | मिश्रित सामाजिक जीवन की चर्चा भी बाद में होगी | में उन मूल आधारभूत बिन्दुओं चर्चा करूंगा जिन पर सामाजिक जीवन आधारित है जैसा की उन मूलभूत बिन्दुओं के बिना तो उनके सामाजिक या संस्थागत जीवन की कोई उपयोगिता ही नहीं रह जाती है | उनके जीवन का दुहरा उद्देश्य है - पहला अपने मूलभूत जीवन को निर्मित करना जो की उनकी अपनी मूल निधि है दूसरा -संस्थागत | .
उनके मूलभूत जीवन का ही संस्था तथा समाज के लिए उपयोग हुआ | विश्व की किसी भी संस्था का ऐसे सदाचारी बाल ब्रह्मचारी ,तपस्वी त्यागी जीवनों से बनता है | यदि त्यागी तपस्वी जीवन या सद्पुरुषों , त्याग  या तपस्या को हटा दिया जाय तो सम्पूर्ण विश्व का धर्म एवं संस्कृति का इतिहास शुन्य हो जाता है |


 

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कुमाऊ उत्तराखंड के त्यागी व संत बिभूति स्वामी परमानन्द का पूर्व वंस गोत्र संशिप्त परिचय इस प्रकार है | आपका जन्म (उत्तराखंड) कुमाऊ के जनपद अल्मोडा के ग्राम मटेना पो. दीनापनी तह.-अल्मोडा में हुआ | आपकी माताश्री का नाम -गंगा देवी बिष्ट तथा पिताश्री का नाम बचीसिंह बिष्ट था | आपका जन्म कुलीन परिवार में हुआ था | आपका परिवार अन्न -धन से संपन्न था | स्वामी परमानन्द जी आजीवन ब्रह्मचारी रहे | आपके तीन भाई तथा एक बहन है |
परिवार के सभी लोग संपन्न स्थिति में है | आप परिवार में सब से छोटे थे | छोटे होने के कारण आप सभी के स्नेह के पात्र थे |आपकी प्रारंभिक शिक्षा दीनापानी से ही प्राप्त की | बचपन से ही आप कुशाग्र बुद्धि के थे |छोटे होने पर भी आपकी राय परिवार में मान्य थी |  आपकी माताजी आपसे विशेष स्नेह एवं ममता रखती थी | पारिवारिक मामलों में आप निर्भीकता पूर्वक बोलते थे आपकी राय भी यदा कदा परिवार के बड़े सदस्यों को मान्य होती थी |

 

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गंभीरता और धीरता आपके जीवन के प्रमुख गुण थे |फिर भी आप विनोदी स्वभाव के भी है | कभी कभी आपका विनोद आपके भक्तों के लिए हास्य रस की बौछार करता है |
मात्र वंश में आपका मामाकोट (नैनिहाल) भैटुली गावं में है जो जनपद अल्मोरा में ही है श्री कसारदेवी व बागेश्वर के बीच पड़ता है (कफ़नफाड़ बागेश्वर रोड ) परमानन्द जी के मामा जी का नाम श्री मदन सिंह ठाकुर तथा हुकुम सिंह ठाकुर है | आपका मात्र वंश भी महान था |


 

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वचपन से ही आपके अंदर देवी भावनाओं की तरंग थी | आपके गाँव में श्री गोरखनाथ -श्री हरज्यु की जागा प्राचीन धूनी है |सैमदेवज्यु ,एडीदेवज्यु ,गौरिल देव ग्वेलज्यूँ  की भी आराधना उपासना गाँव की प्राचीन धुनी में होती है | इस धुनी का इतिहास बताता है की यहाँ पुराने बुजुर्गों ने तपस्या अनुष्ठान किये है | यह भारतीये प्राचीनतम संस्कृति एवं तपस्या परम्परा की अभिव्यक्ति है |धुनी में पूर्वजों की तपस्या का इतिहास छुपा हुआ है | यह बैसी तपस्या अनुष्ठान , २२ दिन का होता है |
जिसमे गाँव के एक या दो बुजुर्ग घर -परिवार से अलग रहकर धूनी मंदिर में तपस्या करते है |अखंड धूनी तथा अखंड दिये ज्योत जलती है | २४ घंटे में एक बार अल्पाहार - फलाहार लेकर रहना पड़ता है |सब कुछ अपने हाथ से ही करना पड़ता है |ये तपस्वी किसी के द्वारा छुए नहीं जाते है |गावों में परंपरा प्राचीन है |सम्पूर्ण गाँव इन दिनों तपस्यामय बन जाता है | ११वे दिन से दासों के द्वारा ढोल नगाडे बजाये जाते है |सभी देवी देवताओ का आह्वान होता है |ये देवी देवता प्रत्यक्ष रूप से मनुष्यों पर अवतार लेते है तथा गाँव वालो को दूत पूत धन धान्य का आशीर्वाद देते है |

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